नागरिकता संशोधन विधेयक: असम के डिब्रूगढ़ में प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग, कई घायल

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में स्थिति बिगड़ती जा रही है. असम के कई इलाक़ों में हिंसा की कई घटनाएँ हुई हैं. कई इलाक़ों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत हुई है.

डिब्रूगढ़ में कर्फ़्यू की परवाह किए बग़ैर सड़कों पर निकले प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फ़ायरिंग हुई है. डिब्रूगढ़ के पुलिस अधीक्षक गौतम बोरा ने बीबीसी को बताया कि पुलिस को इसलिए फ़ायरिंग करनी पड़ी, क्योंकि प्रदर्शनकारी काफ़ी उग्र हो गए थे और पुलिस पर हमला कर रहे हैं.

स्थानीय पत्रकार अलख निरंजन सहाय के मुताबिक़ फ़ायरिंग में कुछ लोगों को गोलियाँ लगी हैं. घायलों को विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.

असम के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) संजय कृष्ण ने कहा है कि यह प्रतिबंध फ़िलहाल आज शाम 7 बजे तक के लिए ही है. इसका असर सभी मोबाइल और डेटा कंपनियों की इंटरनेट सेवाओं पर पड़ा है. इंटरनेट पूरी तरह बंद है.

कई इलाक़ों में इंटरनेट सेवा बंद होने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर असम के लोगों को आश्वस्त किया है कि उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.

अपने ट्वीट में मोदी ने कहा है- कोई भी आपका अधिकार, आपकी विशेष पहचान और सुंदर संस्कृति को आपसे ले नहीं सकता. मैं असम के बहनों और भाइयों को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि उन्हें नागरिकता विधेयक से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं.

इससे पहले आक्रोशित लोगों ने वहाँ के आरएसएस दफ़्तर में तोड़फोड़ की और वहाँ आगज़नी की कोशिशें की. गुवाहाटी में सेना की दो टुकड़ियाँ फ़्लैग मार्च कर रही हैं. डिब्रूगढ़ में भी सेना तैनात की गई है. सेना के जनसंपर्क अधिकारी लेफ़्टिनेंट कर्नल पी खोंगसाई ने बीबीसी को यह जानकारी दी है.

स्थानीय मीडिया में यह खबर भी है कि कश्मीर में प्रतिनियुक्ति पारा मिलीट्री के पाँच हज़ार जवान असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में भेजे जा रहे हैं.

गुवाहाटी के पुलिस कमिश्नर दीपक कुमार ने बीबीसी को बताया कि कर्फ़्यू के दौरान जरुरी सेवाओं को प्रतिबंधित नहीं किया गया है. एम्बुलेंस, मीडिया और विशेष आवश्यकता में घरों से निकले लोगों के पास देखने के बाद पुलिस उन्हें नहीं रोक रही है.

असम की हिंसा के बीच बुधवार को ये विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो गया. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये विधेयक क़ानून बन जाएगा.

डिब्रूगढ़ में भी कर्फ़्यू लगा दिया गया है. वहाँ प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली के घर को निशाना बनाया. मुख्यमंत्री के घर पर पथराव किया गया. केंद्रीय मंत्री के घर पर हमले में संपत्ति को भी नुक़सान पहुँचा है.

असम जाने वाली कई ट्रेनें या तो रद्द कर दी गई हैं या फिर उनका रास्ता बदल दिया गया है. बुधवार रात प्रदर्शनकारियों ने डिब्रुगढ़ ज़िले के चाबुआ में एक रेलवे स्टेशन को आग लगा दी.

तिनसुकिया में पानीटोला रेलवे स्टेशन को भी आग लगा दी गई. असम के अलावा पड़ोसी त्रिपुरा में असम राइफ़ल्स के जवानों को तैनात किया गया है.

त्रिपुरा में भी सेना की दो टुकड़ियाँ तैनात की गई हैं. गुरुवार को विपक्षी कांग्रेस ने त्रिपुरा में बंद का आह्वान किया है.

11 दिसंबर की सुबह सड़कों पर रोज़ की तरह आवाजाही रही. लोग अपने-अपने दफ्तरों और दुकानों के लिए निकल गए. लेकिन, दोपहर 12 बजे के बाद गुवाहाटी के फैंसी बाज़ार, क्रिश्चियन बस्ती, नेटपी हाउस, गुवाहाटी यूनिवर्सिटी, चांदमारी, पलटन बाज़ार जैसे इलाक़ों में छात्र-छात्राओं की अलग-अलग टुकड़ियां नो कैब की तख्तियां लेकर निकलने लगीं.

प्रदर्शनकारियों ने दिसपुर चलो का आह्वान किया और महज़ दो घंटे के अंदर गुवाहाटी-शिलांग हाईवे (जीएस रोड) पर हज़ारों प्रदर्शनकारी जमा हो गए. आक्रोशित लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पुतले फूंके और दर्जनों जगहों पर आगज़नी कर सड़क को जाम कर दिया. इस कारण कई किलोमीटर तक सैकड़ों गाड़ियों की क़तारें लग गईं. पुलिस को वहां लाठीचार्ज करना पड़ा और आँसू गैस के गोले भी छोड़े गए.

इसके बावजूद लोगों का ग़ुस्सा कम नहीं हुआ और प्रदर्शनकारियों की भीड़ लगातार बढ़ती चली गई. लोगों ने जीएस रोड फ्लाइओवर पर रखे गमले तोड़ दिए और पास की खुली दुकानों पर पत्थरबाज़ी की.

शाम होने के बाद हालात और बिगड़ गए और ऐसा लगा मानो हर जगह आग लगी हो. शहर की मुख्य सड़कों और उनको जोड़ने वाली सब्सिडियरी सड़कों पर टायरों और प्लास्टिक की बनी बैरिकेटिंग्स में आग लगाकर जाम कर दिया गया. तब सैकडों गाड़ियां जहां-तहां फंस गईं. इस दौरान गाड़ियों में तोड़फोड़ भी की गई. अंधेरा ढलने के बाद हर जगह जलते हुए टायरों से निकलती आग की लपटें दिखायी देने लगीं और फ़ायरिंग और विस्फोट की आवाज़ें भी सुनी गईं.

ऑल असम गोरखा स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष प्रेम तमांग ने बीबीसी को बताया कि 11 दिसंबर के बंद का आह्वान किसी संगठन ने नहीं किया था. यह स्वतः स्फूर्त है और इसका नेतृत्व कोई नहीं कर रहा है. यह दरअसल जन आंदोलन है. लोगों को लगता है कि कैब के कारण असमिया विरासत और वजूद पर संकट आ जाएगा. इस कारण लोग आंदोलन कर रहे हैं.

जीएस रोड पर प्रदर्शन में शामिल पंकज हातकर ने बीबीसी से कहा कि असम में लोगों के पास पहले से ही बहुत समस्याएं हैं. अब जब सरकार बाहरी लोगों को यहां का नागरिक बना देगी, तब हमलोग कहां जाएंगे. हम पहले से ही बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

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